Student Suicide in Kota: यूपी के मिर्जापुर के रहने वाले आकाश तिवारी से एक चाय की दुकान पर मुलाकात हो गई। पहले तो वह थोड़ा झिझके, लेकिन चाय की चुस्कियों के साथ बात आगे बढ़ी, तो उनकी झिझक भी टूटती रही।
दोपहर करीब दो बजे जवाहर नगर की इस दुकान में सीधी धूप पड़ रही थी। थोड़ी-सी छांव पाकर आकाश ने अपनी बात शुरू की, ‘मैं अपने शहर का टॉपर था। पूरी सिटी में तस्वीरों के साथ पोस्टर लगे थे। लेकिन, यहां आने के बाद सब बदल गया। पहले मैं सोचता था कि जैसा मैंने प्लान किया है, सब वैसा ही होगा। लेकिन, कुछ दिनों बाद ही पता चल गया कि यहां कुछ भी मन मुताबिक नहीं होता।’
आकाश पिछले दो साल से कोटा में रहकर मेडिकल की तैयारी कर रहे हैं। हर बीतते दिन के साथ प्रेशर बढ़ रहा है उनका। वह कहते हैं, ‘लेकिन, हमारे परिवार को इस प्रेशर से मतलब नहीं। लोगों को हमारा प्रयास नहीं दिखता। उन्हें बस रिजल्ट चाहिए। ज़्यादातर पैरेंट्स को नहीं पता होता कि हम यहां किस तरह की समस्याओं का सामना कर रहे हैं। इसी वजह से कई बच्चे टूट जाते हैं। मेरे एक दोस्त ने इस साल जनवरी में आत्महत्या कर ली थी। तब मैं बहुत ज़्यादा तनाव में आ गया था।’
आकाश के दोस्त की डेडबॉडी पंखे से लटकी मिली थी। आकाश के मुताबिक, उसके बहुत बैकलॉग्स थे। इसकी वजह से पढ़ाई में मन नहीं लग रहा था। धीरे-धीरे सिलेबस का बोझ बढ़ता गया और आखिर में वह उस प्रेशर को झेल नहीं पाया।
इस शहर में ऐसे तमाम बच्चे मिल जाएंगे, जिनके किसी जान-पहचान वाले, किसी सहपाठी या किसी दोस्त ने ऐसे ही सफलता के दबाव में टूटकर जान दी हो।
JEE की तैयारी करने वाले रोशन सिंह के बचपन के साथी नवलेश ने भी दो महीने पहले फंदे से लटक कर आत्महत्या कर ली थी। रोशन और नवलेश बचपन के साथी थे। तैयारी भी साथ-साथ चल रही थी।
बिहार की राजधानी पटना का रहने वाला नवलेश, कोटा में लैंडमार्क इलाक़े में रहता था। रोशन ने बताया, नवलेश अपने माता-पिता की इकलौती संतान था। पिता ट्रक चलाते हैं, तो समझ सकते हैं कि बेटे की तैयारी का खर्च उठाने के लिए कितनी मेहनत करते होंगे। शायद पढ़ाई के साथ इस बात का प्रेशर भी नवलेश के जीवन पर भारी पड़ गया। उसने अपने सुसाइड नोट में लिखा था, ‘सॉरी पापा, आपने बहुत पैसे खर्च किए, लेकिन मुझसे हो नहीं पाया। मैं पढ़ाई को लेकर बहुत तनाव में था।’
रोशन कहते हैं, ‘नवलेश के जाने से उसका पूरा परिवार टूट गया है। उसके मां-बाप को समझ नहीं आ रहा कि अब आगे वे क्या करेंगे, इकलौता चिराग तो बुझ गया। इस घटना के बाद मेरे पैरेंट्स भी बहुत चिंतित रहने लगे हैं।’
इसी तरह, पिछले साल मध्य प्रदेश के दमोह के रहने वाले 16 साल के प्रथम जैन ने हॉस्टल रूम के बाथरूम में फांसी का फंदा लगाकर सुसाइड किया था। उसने अपने सुसाइड नोट में लिखा था, ‘सॉरी मम्मी-पापा, मैं आपकी उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाया हूं। मैं किसी लायक नहीं। बहुत लड़ा, लेकिन हार गया।’
इस तरह के सुसाइड नोट बताते हैं कि बच्चे पढ़ाई को लेकर किस तरह के प्रेशर में हैं।
मेडिकल की तैयारी करने वाले सुदीप का मानना है कि इसके लिए मां-बाप भी जिम्मेदार हैं कुछ हद तक। वह कहते हैं, ‘सभी बच्चे एक जैसे नहीं होते। लेकिन, हमारे पैरेंट्स हमारी तुलना रिश्तेदारों और पड़ोसियों के बच्चों से करने लगते हैं। यह तुलना अवसाद से भर देती है हमें। परिवार के प्रेशर की वजह से हमारी पढ़ाई भी प्रभावित होती है। ऐसे में रिजल्ट का प्रभावित होना लाजमी है। छोटे-छोटे गांवों और कस्बों से अभिभावक अपने बच्चों को यहां लाकर छोड़ जाते हैं। इस शहर में पढ़ाई के अलावा खाने-पीने, रहने और स्वास्थ्य – दूसरी कई चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता है।’
एक साल से जेईई की तैयारी कर रहे बरेली के अभय वर्मा बताते हैं कि कोटा में एडमिशन तो किसी भी लेवल के छात्र को मिल जाएगा, वह भी किसी भी संस्थान में। कोचिंग संस्थानों को इस बात से बिल्कुल फर्क नहीं पड़ता कि छात्र ने 10वीं या 12वीं में कितने अंक हासिल किए हैं। जब पढ़ाई शुरू होती है, तो यहां के कोचिंग संस्थानों में हर तीसरे सप्ताह टेस्ट लिया जाता है। इनमें अच्छा प्रदर्शन करने वाले बच्चों को सिलेक्ट कर लिया जाता है स्टार क्लास में। सामान्य क्लास के मुक़ाबले स्टार क्लास में बच्चों पर शिक्षक अधिक ध्यान देते हैं। इनको पढ़ाने वाले शिक्षक सामान्य क्लास के मुक़ाबले अधिक योग्य और अनुभवी भी होते हैं। संस्थान का पूरा ध्यान होता है स्टार क्लास के बच्चों पर। यह पूरा खेल बाज़ार से जुड़ा हुआ है क्योंकि यहीं से बच्चे अच्छी रैंक लाते हैं। इससे अगले साल होने वाले एडमिशन का बाज़ार तय होता है।
तृप्ति कश्यप कहती हैं, ‘हर बच्चा चाहता है कि उसका सिलेक्शन स्टार क्लास में हो जाए, लेकिन ऐसा संभव नहीं। इससे हमारे अंदर प्रतिस्पर्धा से अधिक हीन भावना भरती जाती है। कोचिंग संस्थानों को सिर्फ स्टार क्लास के बच्चों से मतलब है। बाकी बच्चों को अपने हाल पर छोड़ दिया जाता है।’ ऐसा नहीं है कि यह व्यवस्था किसी एक कोचिंग संस्थान में है। कोटा की हर छोटी-बड़ी कोचिंग में आपको यही सिस्टम दिखेगा।
इसके बावजूद यहां के लोग बच्चों की समस्याओं, आत्महत्या पर बात नहीं करना चाहते। वजह है पढ़ाई का व्यापार। कोचिंग संस्थान, होटल-ढाबा, पेइंग गेस्ट, हॉस्टल, कॉपी-किताब की दुकानें – कुल मिलाकर बहुत लंबा चौड़ा बाज़ार है कोटा में पढ़ाई के चलते। अगर आत्महत्या वाली ख़बरें सुर्खियां बनीं, तो लोगों को डर है कि बच्चे यहां आना कम कर देंगे। धंधा चौपट हो जाएगा। यही वजह है कि जब किसी से बच्चों के सुसाइड पर बात करो, तो वह पढ़ाई को छोड़ दूसरी तमाम वजहें गिनाना शुरू कर देता है।