मणिपुर (Manipur news) में तीन मई को हिंसा भड़की थी। तारीखों के हिसाब से तीन महीने से ज़्यादा का वक़्त हो गया और सूबे में अब भी ज़िंदगी सामान्य नहीं हो पायी है। किसी ने नहीं सोचा था कि मैतई समुदाय को एसटी सूची में शामिल किए जाने का मसला ऐसा गंभीर मोड़ ले लेगा। आज मणिपुर से लेकर दिल्ली तक, तनाव की आंच साफ़ महसूस की जा सकती है। राजधानी की संसद मणिपुर पर हो रही बहसों से गर्म है (Debate on Manipur in Parliament), तो राज्य अपने हालात से जूझ रहा है।
मणिपुर हिंसा ने इस पूरे सूबे को दो हिस्सों में बांटकर रख दिया है। एक और कुकी हैं और दूसरी ओर मैतई। एक तरफ पहाड़ है और दूसरी तरफ मैदान। हिंसा से पीड़ित आम जनता है और सामने वे लोग, जो आग में घी डालने का काम कर रहे।लेकिन, आखिर यह आग भड़की कैसे? पहली चिंगारी उठी कैसे? (Reason for violence in Manipur)
इसका जवाब ना तीन मई की घटना में है और ना उसके पहले हुए छिटपुट विवादों में। मणिपुर अगर आज बंटा दिख रहा है, तो उसकी वजह है अंग्रेज़ों की नीति। मणिपुर में आज जो कुछ भी हो रहा है, उसके लिए मूल रूप से जिम्मेदार है ब्रितानी हुकूमत और उसकी नीतियां।
मणिपुर की सीमा बर्मा यानी आज के म्यांमार से लगती है और अंग्रेज़ों ने पूर्वोत्तर के इस राज्य को इसी नज़र से देखा। एक सीमांत राज्य, जो बफर जोन का काम कर सकता है। ब्रिटिश पॉलिटिकल एजेंट कर्नल विलियम मैकुलोच ने 8 जुलाई 1861 को गवर्नर जनरल को मणिपुर पर एक नोट लिखा। इसमें उन्होंने जानकारी दी थी कि वह घाटी के चारों ओर पहाड़ियों पर और पश्चिम में बराक और मकरू तक कुकी लोगों पर नज़र रखते हैं। उन्हें यह काम मणिपुर के राजा नूर नारा सिंह ने दिया था, जनजातियों की देखरेख का। दरअसल, 1830-40 में मैतई राजा ने अंग्रेज़ों को एक तरह से पूरा अधिकार दे दिया कि वे जनजातियों से ख़ुद डील करें।मैकुलोच के बाद आए दूसरे पॉलिटिकल एजेंट मेजर जनरल जेम्स जॉनस्टोन ने लिखा है कि मैकुलोच ने सीमांत इलाक़ों में कुकी लोगों को बसाया, ताकि सीमाओं की सुरक्षा हो सके।
अंग्रेज़ों को सबसे ज़्यादा डर था बर्मा की ओर से। सन 1824 से 1826 के बीच बर्मा के साथ उनका युद्ध भी हो चुका था। वजह थी, बर्मा की सीमाओं का विस्तार। ऐसे में बर्मा से लगते इलाक़ों में कुकी लोगों को बसाया गया, ताकि उधर से कोई ख़तरा ना रहे। इसी तरह, अंग्रेज़ों ने शुरू से ही राज्य को मैदान और पहाड़ों में बांटकर रखा।
जेम्स जॉनस्टोन के मुताबिक, यह रणनीति इतनी सफल रही थी कि बंगाल सरकार ने भी इसे अपना लिया। उत्तरी कछार में उसने कुकी लोगों की कॉलोनियां बसाईं ताकि वे एक बैरियर का काम कर सकें।
कुकी लोगों का इस्तेमाल इस तरह से किया गया कि इतिहास का यह छोटा-सा हिस्सा हमेशा के लिए उनके ज़ेहन में बस गया। वे भी अपना महत्व एक बफर जोन के रूप में देखने लगे। इसकी एक बानगी 1891 में हुए एंग्लो-मणिपुर युद्ध (Anglo-Manipur War) से मिलती है।
1857 की क्रांति के बाद पूरे देश में स्वतंत्रता आंदोलन की लहर तेज़ होती गई थी। लेकिन, मणिपुर में चिंता यह थी कि ब्रिटिश साम्राज्य अब उन्हें पहले जैसी रणनीतिक अहमियत नहीं दे रहा। इतिहासकारों के मुताबिक, बर्मा के साथ हुए तीसरे युद्ध में अंग्रेज़ों को जीत मिली थी। बर्मा का एक हिस्सा क़ब्ज़े में आ गया था अंग्रेज़ों के। ऐसे में मणिपुर पर से उनका ध्यान हट गया। उनके लिए इस इलाक़े की पहले जैसी अहमियत भी नहीं रही थी।इससे उपजे असंतोष ने जन्म दिया विद्रोह को। उस लड़ाई में कुछ अंग्रेज़ ऑफिसर मारे गए थे। यह मुद्दा ब्रिटेन की संसद में भी उठा। उस समय भी राज्य को सीधे शासन में लाने का फैसला नहीं हुआ। बफर जोन वाली रणनीति ही जारी रखी गई।
जाहिर है कि मैतई और कुकी लोगों के बीच आज जो बंटवारा दिख रहा है, उसके बीज अंग्रेज़ों ने बोए। उनकी अपनी सामरिक और रणनीति मजबूरी थी, लेकिन उसे उन्होंने मणिपुर की जनता पर लाद दिया।
इतिहास का यह ऐसा टुकड़ा है, जिसका असर आज़ादी के बाद भी देखने को मिला। जम्मू-कश्मीर, हैदराबाद और जूनागढ़ समेत जो कुछ मुट्ठीभर रियासतें थीं, जिन्होंने देश की आज़ादी के बाद विलय पर हस्ताक्षर किए, उनमें एक नाम मणिपुर का भी था। 15 अक्टूबर 1949 को राज्य अभिन्न अंग बना हिंदुस्तान का। 1972 में जाकर इसे पूर्ण राज्य का दर्जा मिल गया। लोकतंत्र आने के बाद राजा-रजवाड़ा वाला मामला तो नहीं रहा, लेकिन सुरक्षा को लेकर जो नज़रिया अंग्रेज़ों ने बनाया था, वह कायम रह गया।
एक्सपर्ट्स का मानना है कि मणिपुर के कुकी बहुल इलाक़ों को बफर जोन के रूप में इस्तेमाल करने की रणनीति सबसे बड़ी भूल थी। यह सोचना ही ग़लत था कि बर्मा में हो रही घटनाओं से ख़ुद को बचाने के लिए मणिपुर का इस्तेमाल एक कवच के रूप में किया जाए।नतीजा यह निकला कि विकास की उम्मीद में आबादी ने या तो इंफाल घाटी का रुख किया या फिर उग्रवाद और नशे की खेती का दामन थाम लिया। अभी की हिंसा के पीछे एक वजह पोस्ता की खेती भी बताई जा रही है।
मणिपुर में पोस्ता की खेती पर प्रतिबंध है। बावजूद इसके राज्य के पहाड़ी इलाक़ों और यहां तक कि इंफाल घाटी के कुछ हिस्सों में भी इसकी खेती धड़ल्ले से हो रही। एक रिपोर्ट बताती है कि कई समुदाय शामिल हैं नशे के इस कारोबार में। इसमें बाहर से फंडिंग होती है। पड़ोसी देशों की ड्रग कार्टेल्स ने मणिपुर के किसानों को पोस्ता की खेती के साथ-साथ हेरोइन और ब्राउन शुगर के उत्पादन के लिए भी प्रेरित किया है।
मणिपुर में 3 मई को मैतई और कुकी समाज में भड़की हिंसा
एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार मणिपुर में तीन मई को मैतई और कुकी जनजाति समुदाय के बीच हिंसा शुरू हुई थी. मैतई जो कि घाटी बहुल समुदाय है, की मांग है कि उसको भी राज्य में कूकी समाज की तरह शेड्यूल ट्राइब यानी एसटी का दर्जा दिया जाए. जबकि कुकी जनजाति जो कि पहाड़ी बहुल समुदाय है, इसका विरोध कर रही थी. मैतई समाज की मांग के विरोध में कुकी समाज ने 3 मई को ही एक आदिवासी एकजुटता रैली निकाली, जो कुछ समय में हिंसा में तब्दील हो गई.
हिंसा के बीच अफवाहों का बाजार हुआ गर्ग
रिपोर्ट के अनुसार हिंसा के दौरान लोगों के बीच तरह-तरह की अफवाह फैलनी शुरू हो गई. इस क्रम में एक अफवाह फैली कि मैतई समाज की महिला का साथ दुष्कर्म हुआ है. इस सूचना के बाद मैतई समाज के लोगों में रोष फैल गया और कुकी समाज के खिलाफ उनका आक्रोश भड़क गया. जिसके चलते आक्रोशित मैतई समाज के लोगों की भीड़ कोंगपो जिले के एक गांव में घुसी और जमकर लूटपाट और आगजनी की.
महिलाओं के साथ दरिंदगी की घटना
इस दौरान गांव के ही पांच लोग खुद को बचाने के लिए जंगल की ओर निकल पड़े. इन लोगों में दो पुरुष और तीन महिलाएं ( 56 वर्षीय एक व्यक्ति, 19 वर्षीय उसका बेटा, 21 वर्षीय बेटी, 52 व 42 साल को दो महिलाएं ) शामिल थे. इन लोगों ने जान का खतरा देख फोन से पुलिस को सूचना दी और खुद की लोकेशन जंगल में होना बताई. मौके पर पहुंची नोंगपोक पुलिस ने इन लोगों का रेस्क्यू किया और गाड़ी में अपने साथ पुलिस स्टेशन ले जाने लगे. तभी पुलिस थाने महज दो किमी दूर लोगों की भीड़ ने पुलिस के घेर इन लोगों को गाड़ी से उतार लिया. भीड़ ने 56 वर्षीय शख्स की वहीं हत्या कर दी और 19 वर्षीय भाई के सामने ही महिलाओं के कपड़े उतारे. इसके बाद दरिंदों ने पहले 21 वर्षीय युवती के साथ गैंगरेप किया और फिर भाई की हत्या कर दी. घटना को अंजाम देने के बाद आरोपियों ने महिलाओं को नग्न अवस्था में सड़क पर घुमाया.
अब सवाल है कि इस समस्या का समाधान कैसे हो?
सबसे पहले तो मैदान बनाम पहाड़ वाली मानसिकता से निकलना होगा। यह बंटवारा अंग्रेज़ों ने किया था। कुकी और मैतई लोगों के बीच अविश्वास की वजह भी यही बंटवारा है। कुकी लोगों को डर है कि उनके पहाड़, उनके जंगलों पर मैतई लोगों का क़ब्ज़ा हो जाएगा, सिस्टम में मैतई लोगों का दबदबा बढ़ेगा। इस अविश्वास को ख़त्म करने का एक ही तरीका है डिवेलपमेंट। मणिपुर के सीमांत इलाक़े कोई बफर स्टेट नहीं, बल्कि भारत का अभिन्न अंग हैं।”