मुस्लिम महिलाओं द्वारा हिजाब पर बेन करने की मुहिम से घबराए मजहबी लोगों ने एक खौफनाक तरीका चुना है मुस्लिम महिलाओं को कुचलने के लिए
Girls poisoned in Iran:
महसा अमीनी, इस नाम को आप भूले नहीं होंगे. महसा अमीनी की कब्र पर लगे पत्थर में कुर्दिश ज़बान में लिखा है, ‘डियर जीना…तुम कभी नही मरोगी. तुम एक प्रतीक बनकर हमेशा के लिए अमर हो जाओगी.’ नीचे तारीख 1 अक्टूबर 2022 लिखी है. 22 साल की महसा अमीनी सच में प्रतीक बन चुकी हैं. हिजाब ही नहीं हुकूमत के खिलाफ क्रांति का प्रतीक. ऐसी क्रांति, जिसकी तपिश सिर्फ इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान ही नहीं, बल्किदुनिया भर के मजहबी ठेकेदारों को झुलसा रही है.
भारत के मशहूर शायर मजाज लखनवी की वो बागी लड़कियां आज ईरान के चौक-चौराहों पर उतर आई हैं, जिनके लिए उन्होने लिखा था, ‘तेरे माथे पे ये आंचल बहुत ही खूब है, लेकिन तू इस आंचल से एक परचम बना लेती तो अच्छा था.’ मशहूर शायर मजाज लखनवी ने जब ये शेर लिखा था, तो शायद उन्हे भी अंदाज नहीं रहा होगा कि उनका ये शेर लिखे जाने के वर्षों बाद एक दिन हकीकत बन जाएगा और हजारों महिलाएं एक दिन हिजाब को सच में अपना परचम बना लेंगी.
मजहबी ठेकेदारों का खौफनाक कदम
लेकिन महिलाओं पर अपनी मनमर्जियां थोपने के आदी रहे मजहबी ठेकेदारों के लिए ये बगावत बर्दाश्त के बाहर है. लिहाजा, उन्होंने इस क्रांति को कुचलने का एक नया रास्ता निकाला है. ऐसा तरीका जिसके बारे में सुन कर आप भी सहम जाएंगे. दरअसल, ईरान के कुम शहर में सैकड़ों स्कूली छात्राओं को इसलिए जहर दे दिया गया है, ताकि वो स्कूल न जा सकें.
सैकड़ों छात्रों को दिया गया जहर
शुरुआती जानकारी के अनुसार, ये एक तरह का केमिकल अटैक है और इस अटैक के जरिए ईरान के चार शहरों के 14 स्कूलों में पढ़ने वाली छात्राओं को निशाना बनाया गया. एक-एक कर जब बड़े पैमाने पर छात्राएं बीमार पड़ने लगीं, तब जाकर इस मामले का खुलासा हुआ. ईरान के स्वास्थ्य मंत्री यूनुस पनाही ने इस घटना की पुष्टि की है और उनके अनुसार ईरान के पवित्र शहर कुम और आसपास के कई इलाकों में बड़ी संख्या में स्कूली छात्राओं को जहर दिया गया है. ऐसा इसलिए किया गया है, ताकि इन लड़कियों का स्कूल जाना बंद कराया जा सके.
इस खौफनाक घटना के पीछे कौन?
इसमें ईरान का पवित्र शहर कुम भी शामिल है, कुम को रूढ़िवादी और धार्मिक तौर पर कट्टर शहर माना जाता है, जहां धार्मिक शिक्षा के कई बड़े केंद्र भी मौजूद हैं. और इसीलिए छात्राओं पर हुए इस केमिकल अटैक के पीछे कट्टरपंथियों का हाथ होने की आशंका भी जताई जा रही है, हालांकि इस घटना के पीछे कौन है, इसकी जानकारी सामने नहीं आई है. लेकिन, वहां से जो वीडियो सामने आए हैं, वो बेहद परेशान करने वाले हैं. सोशल मीडिया पर वायरल इन वीडियोज में बड़ी संख्या में स्कूली छात्राएं अस्पताल में भर्ती दिख रही हैं, जबकि अस्पतालों और स्कूलों के बाहर एम्बुलेंस की कतारें भी नजर आ रही हैं.
महीनों से चल रहा है ये सिलसिला
अलग-अलग मीडिया रिपोट्स के अनुसार स्कूली छात्राओं को जहर देने का ये सिलसिला नया नहीं है और पिछले कई महीनों से ऐसा किया जा रहा है, लेकिन न तो अब तक सरकार ने इस पर ध्यान दिया और न ही ये पता चल पाया कि इसके पीछे कौन है. लेकिन, इस बार मामला बड़ा है, और जब एक साथ बड़ी संख्या में छात्राएं बीमार पड़ने लगीं, तो सरकार को खुद सामने आना पड़ा.
हिजाब के खिलाफ चल रहा प्रदर्शन
छात्राओं पर केमिकल अटैक का ये मामला ऐसे वक्त सामने आया है, जबकि ईरान में एंटी हिजाब प्रोटेस्ट चल रहे हैं और इसीलिए कई मानवाधिकार कार्यकर्ता इस मामले को भी एंटी हिजाब मूवमेंट से जोड़कर देख रहे हैं. क्योंकि, रिपोर्ट्स के अनुसार जनवरी के अंत तक इन प्रदर्शनों में 525 प्रदर्शनकारी मारे जा चुके हैं, जिनमें 71 नाबालिग भी शामिल हैं. यही नहीं 4 प्रदर्शनकारियों को फांसी दी जा चुकी है, जबकि 20 हज़ार से ज्यादा लोग गिरफ्तार किए जा चुके हैं.
लेकिन, हुक्मरानों की इस सख्ती के बाद भी प्रदर्शनकारी पीछे हटने को तैयार नहीं हैं, और इन प्रदर्शनों का दायरा लगातार बड़ा होता रहा है. हालांकि, बगावत की ये स्क्रिप्ट ईरान की महिलाओं के दिमाग में पहले से मौजूद थी. लेकिन, 13 सितंबर 2022 की एक घटना ने इसे हवा दे दी. इस दिन ईरान के कुर्दिस्तान प्रांत की रहने वाली महसा अमीनी अपने परिवार के साथ तेहरान में घूम रही थीं.
22 वर्ष की महसा अमीनी ने एक लंबा ओवरकोट पहना था और उन्होने अपना चेहरा हिजाब से ढक रखा था, लेकिन तभी ईरान की मोरॉलिटी पुलिस वहां पहुंचती है और महसा को हिरासत में ले लेती है. महसा का जुर्म ये था कि उनका सिर ढकने वाला हिजाब कुछ ढीला था और उससे उनके कुछ बाल बाहर दिख रहे थे. मजहबी पुलिस को महसा की जुल्फों की ये आवारगी बिल्कुल पसंद नहीं आई. सजा के तौर पर उन्हें डिटेंशन सेंटर ले गई, वहां उनकी इतनी पिटाई की गई, कि वो बुरी तरह जख्मी हो गईं. तीन दिन बाद यानी 16 सितंबर को उनकी मौत हो गई.
वैसे तो ईरान की महिलाएं ऐसी खबरों की आदी हो चुकी थीं, लेकिन 22 साल की एक युवा लड़की के साथ घटी इस घटना ने उस आग को जिन्दा कर दिया, जो सालों से इन महिलाओं के दिलों में सुलग रही थी. महिलाओं ने मजहबी नैतिकता के नाम पर थोपे गए हिजाब को उतार फेंका. आग के हवाले कर दिया और अपने बालों को काटना शुरू कर दिया. स्कूल कॉलेज हों या यूनिवर्सिटी, सरकारी दफ्तर हों या बाजार, रेलवे स्टेशन हों या खेल के मैदान. हर जगह ईरान की सरकार के खिलाफ प्रदर्शन शुरू हो गए. लेकिन, कट्टरपंथियों की ताकत इतनी ज्यादा है कि महिलाओं को उनकी आजादी और उनका हक तो नहीं मिला, उल्टा उन्हे जहर दिया जा रहा है, ताकि वो स्कूल ही न जा सकें.
अफगानिस्तान और ईरान में ज्यादा अंतर नहीं
बेबस और लाचार छात्राओं की ऐसी ही तस्वीरें पिछले वर्ष अफगानिस्तान से तब सामने आईं थी, जब वहां के तालिबान प्रशासन ने महिलाओं के कॉलेज जाने पर रोक लगा दी थी. लेकिन अफगानिस्तान और ईरान की तस्वीरों में खास अंतर नहीं है, अंतर सिर्फ इतना है कि लड़कियों को पढ़ाई से दूर रखने के लिए तालिबान ने बंदूकों का इस्तेमाल किया था, लेकिन ईरान में उसके लिए जहर का इस्तेमाल किया जा रहा है.
यानी एक बात तो साफ है और वो ये कि ये कट्टरपंथी चाहे ईरान के हों या तालिबान के. इन्हें महिलाओं की खुली सोच और खुले बालों से इतना डर लगता है कि वो उनकी आजाद खयाली पर लगाम लगाने के लिए हर मुमकिन तरीका अपनाने को तैयार हैं. लेकिन, हम यहां आपको फ्रांस के मशहूर विचारक विक्टर ह्यूगो की लिखी एक पंक्ति बताना चाहेंगे. उन्होंने लिखा था, ‘पृथ्वी की कोई भी शक्ति उस विचार को नहीं रोक सकती, जिसका समय आ गया हो.’
और इन कट्टरपंथियों को ये समझ लेना चाहिए कि ये समय जितना पुरुषों का है, उतना ही महिलाओं का भी है और इसीलिए उन्हें स्कूल जाने से या उड़ान भरने से रोका नहीं जा सकता…