भोजपुरी संगीत की दुनिया में कुछ गीत ऐसे होते हैं, जो दिलों को छू जाते हैं और समय के साथ अमर हो जाते हैं। ऐसा ही एक गीत है “जग में माई बिना केहू सहाई ना होई, केहू केतनो दुलारी बाकी माई ना होई”, जिसे सुनकर हर कोई भावुक हो जाता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस गीत की असली कहानी क्या है?
आज हम आपको सुनाने जा रहे हैं इस गीत की अनसुनी कहानी, खुद गायक आलोक पाण्डेय गोपाल की जुबानी!
कैसे जन्मा यह वायरल song?*
इस गीत की शुरुआत 2004 में हुई, जब दारोगा प्रसाद राय डिग्री महाविद्यालय के प्रिंसिपल सुभाष यादव ने इसे लिखा और पहली बार इसे गाने के लिए आलोक पाण्डेय गोपाल को सौंपा। यह मुलाकात सिवान के आदर्श राज वि. म. मध्य विद्यालय में आयोजित कवि सम्मेलन के दौरान हुई थी, जो पंडित महेंद्र शास्त्री जयंती समारोह का हिस्सा था।
इस समारोह में JNU के हिंदी विभाग के डीन, केदार नाथ सिंह, IAS अशोक पांडेय, और IPS अनिल पांडेय जैसे प्रशासनिक अधिकारी उपस्थित थे।
जब पहली बार मंच से गूंजा यह गीत!
पहली बार इस गीत को 2004 में मंच से प्रस्तुत किया गया और यह सुनने वालों के दिल में उतर गया। इस गीत में माँ की ममता और उसका अतुलनीय त्याग दर्शाया गया था, जिसने हर किसी को भावुक कर दिया।

सुरसंग्राम में मिली पहचान
इस गीत की लोकप्रियता धीरे-धीरे बढ़ती गई और फिर 2009 में यह महुआ चैनल के प्रसिद्ध रियलिटी शो “सुरसंग्राम” में गूंजा। यहाँ मनोज तिवारी के साथ मंच साझा करने का अवसर मिला और इस प्रस्तुति को मालिनी अवस्थी, कल्पना पटवारी, शारदा सिन्हा, रवि किशन सहित कई दिग्गजों ने खूब सराहा।
इस गाने ने हर किसी की आँखों में आँसू ला दिए और इसे भोजपुरी संगीत का एक अनमोल रत्न बना दिया।
जब 2012 में टी-सीरीज से हुआ आधिकारिक रिलीज़
इस गीत को जबरदस्त लोकप्रियता मिली और आखिरकार 2012 में टी-सीरीज के माध्यम से इसका आधिकारिक रिलीज़ हुआ। जब यह गाना रिलीज़ हुआ, तो आलोक पाण्डेय गोपाल ने खुद सुभाष यादव जी से मिलकर उन्हें धन्यवाद दिया।
लेकिन इस मुलाकात का एक अनोखा संयोग था। जब आलोक जी ने कहा –
“कवि जी, मैं आपको धन्यवाद कहने आया हूँ!“
तो सुभाष यादव जी ने हंसते हुए जवाब दिया –
“मैं तो आपको ही ढूंढ रहा था!”
एक ऐसा गीत, जो हर दिल को छू जाता है
आज यह गीत हर भोजपुरी प्रेमी के दिल में बसा हुआ है। चाहे स्टेज शो हो, सांस्कृतिक कार्यक्रम हो या पारिवारिक आयोजन – यह गीत जब भी गूंजता है, माँ की ममता की याद दिला जाता है।
आलोक पाण्डेय गोपाल कहते हैं –
“यह सिर्फ एक गीत नहीं, बल्कि एक भावनात्मक एहसास है, जो हर माँ की ममता को दर्शाता है। जब तक भोजपुरी भाषा जीवित रहेगी, यह गीत हर दिल में बसेगा!”