सीवान, बिहार – भोजपुरी लोकगायन के क्षेत्र में अपनी अमिट छाप छोड़ने वाले बिहार के सिवान जिले के बंगरा उज्जैन निवासी आलोक पाण्डेय ‘गोपाल’ ने एक और ऐतिहासिक उपलब्धि अपने नाम कर ली है। उन्हें थावे विद्यापीठ ने विद्या वाचस्पति डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया है। यह सम्मान उन्हें भारतीय लोकसंस्कृति के प्रचार-प्रसार, हिंदी और भोजपुरी साहित्य के संरक्षण व संवर्धन में उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए दिया गया है। ‘माटी के लाल’ के नाम से मशहूर आलोक पाण्डेय ‘गोपाल’ की इस उपलब्धि ने भोजपुरी संगीत जगत में खुशी की लहर दौड़ा दी है।
संगीत की प्रारंभिक शिक्षा और यात्रा:
आलोक पाण्डेय गोपाल का जन्म 20 जनवरी 1992 को बिहार के सीवान में हुआ था। उनके पिता, पंडित रामेश्वर पांडे, एक शास्त्रीय गायक थे, जिन्होंने गोपाल को संगीत की प्रारंभिक शिक्षा दी। उनकी माता, श्रीमती आरती देवी, ने भी उन्हें संगीत के प्रति प्रेरित किया। गोपाल ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) से संगीत की बारीकियां सीखीं और फिर गोरखपुर विश्वविद्यालय से हिंदी में एम.ए., प्रयाग संगीत समिति से संगीत प्रभाकर (बी.एड), और प्राचीन कला केंद्र, चंडीगढ़ से भास्कर (एम.ए. वोकल) की उपाधियां प्राप्त कीं। उनकी शिक्षा ने उन्हें संगीत और साहित्य दोनों में गहरी समझ प्रदान की, जो उनके करियर में महत्वपूर्ण साबित हुई।

‘माटी के लाल’ से डॉक्टरेट तक का गौरवपूर्ण सफर:
आलोक पाण्डेय गोपाल ने अपने 15 वर्षों के सक्रिय करियर में कई महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की हैं। उन्होंने डीडी किसान पर प्रसारित होने वाले लोकप्रिय रियलिटी शो ‘माटी के लाल’ में जीत हासिल करके भारत के पहले लोक स्टार का खिताब जीता। इस जीत ने उन्हें राष्ट्रीय पहचान दिलाई और उनके करियर को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। उन्होंने महुआ चैनल पर प्रसारित होने वाले ‘सुर संग्राम’ में भी अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया और उपविजेता रहे।
विविध संगीत शैली और सामाजिक योगदान:
‘गोपाल’ की गायन शैली में बनारसी अंदाज के साथ-साथ पूरबी, निर्गुण, कजरी, चैती, होली और अन्य शैलियों की झलक मिलती है। उन्होंने न केवल भोजपुरी, बल्कि अवधी, ब्रज, मैथिली, मगही और नागपुरी (आदिवासी) भाषाओं में भी अपनी कला का प्रदर्शन किया है।
संगीत के साथ-साथ, आलोक पाण्डेय ‘गोपाल’ सामाजिक कार्यों में भी सक्रिय रूप से भाग लेते हैं। वे ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’, ‘जल जीवन हरियाली’, बाल मजदूरी उन्मूलन, दहेज प्रथा के खिलाफ जागरूकता अभियान और नशा मुक्ति अभियान जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर काम कर रहे हैं। वे ‘थाटी फाउंडेशन’ के माध्यम से भारत की दुर्लभ और शुद्ध लोक कला को बढ़ावा देने में भी योगदान दे रहे हैं।
फिल्मों और टीवी शो में योगदान:
आलोक पाण्डेय ‘गोपाल’ ने ‘लहू के दो रंग’, ‘कच्चे धागे’, ‘नागिन और नागना’, ‘इच्छाधारी’, ‘का उखाड़ लेबा’ और ‘गवार दूल्हा’ जैसी कई भोजपुरी फिल्मों में भी काम किया है। उन्होंने डीडी किसान पर ‘माटी के लाल’ और महुआ टीवी पर ‘सुर संग्राम’ जैसे लोकप्रिय टीवी शो में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया है। वे कई टीवी शो के एंकर भी रहे हैं।
डॉक्टरेट की मानद उपाधि: एक ऐतिहासिक पल:
थावे विद्यापीठ ने आलोक पाण्डेय ‘गोपाल’ को विद्या वाचस्पति डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित करके उनके योगदान को मान्यता दी है। यह उपाधि उन्हें भारतीय लोकसंस्कृति, हिंदी और भोजपुरी साहित्य के संरक्षण और संवर्धन में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए दी गई है।
आलोक पाण्डेय ‘गोपाल’ की महत्वपूर्ण उपलब्धियां:
- लॉर्ड बेडेन पॉवेल राष्ट्रीय पुरस्कार (2020), भारत सरकार द्वारा
- ‘माटी के लाल’ लोक स्टार के विजेता, डीडी किसान (2016)
- सुर संग्राम, महुआ चैनल (2010) में उपविजेता
- भिखारी ठाकुर सम्मान, गोरखपुर
- महर्षि भृगु सम्मान, बलिया
- पंडित मदन मोहन मालवीय सम्मान, आरा
- भोजपुरी गौरव सम्मान, दिल्ली
- सीवान गौरव सम्मान, बिहार
- सुर श्री सम्मान, मुंबई
- सुर गंगा सम्मान, वाराणसी
- भोजपुरी रत्न सम्मान, बक्सर
- मंगल पांडे सम्मान, बलिया
- युवा खोज प्रतियोगिता के विजेता, बिहार सरकार
- लोक रत्न सम्मान, दिल्ली
आलोक पाण्डेय ‘गोपाल’ का योगदान:
- भोजपुरी लोकगायन को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई।
- भारतीय लोकसंस्कृति और साहित्य के संरक्षण और संवर्धन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- सामाजिक मुद्दों पर जागरूकता फैलाने के लिए संगीत का उपयोग किया।
- युवा पीढ़ी को लोक संगीत और संस्कृति के प्रति प्रेरित किया।
आलोक पाण्डेय ‘गोपाल’ का जीवन और कार्य युवा कलाकारों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उनकी उपलब्धियां यह साबित करती हैं कि कड़ी मेहनत, समर्पण और प्रतिभा से किसी भी लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।