Government Introduces New Criminal Laws to Replace Outdated British-Era Laws – देश में करोड़ों आपराधिक मुकदमों की लंबी कतारों के लिए अंग्रेजों के जमाने के कानूनों को जिम्मेदार ठहराया जाता रहा है. अब केंद्र सरकार ने इस बाधा को हटाने की राह खोल दी है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने संसद के मानसून सत्र के आखिरी दिन शुक्रवार को लोकसभा में तीन विधेयक पेश किए हैं. भारतीय न्याय संहिता विधेयक, भारतीय साक्ष्य विधेयक और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता विधेयक संसद की मंजूरी मिलते ही कानून बन जाएंगे. इसके साथ ही ये अंग्रेजों के जमाने की करीब 163 साल पुरानी भारतीय दंड संहिता (IPC), 151 साल पुराने भारतीय साक्ष्य अधिनियम (IEA) और 150 साल पुरानी दंड प्रक्रिया संहिता (CRPC) की जगह ले लेंगे. साथ ही भाजपा के शासनकाल में सबसे ज्यादा विवादित रहा राजद्रोह कानून भी खत्म हो जाएगा. शाह ने दावा किया है नए कानून बनने के बाद आपराधिक मुकदमों में दोषियों को सजा मिलने का अनुपात 90% तक बढ़ जाएगा. मुकदमों की प्रक्रिया तेज करने के लिए 2027 तक सभी कोर्ट कंप्यूटराइज्ड कर लेने की तैयारी की गई है.
राजद्रोह कानून होगा खत्म, धारा 150 से मिलेगी सजा
गृह मंत्री शाह ने मौजूदा राजद्रोह कानून के भी इन विधेयकों के कानून बनते ही निरस्त हो जाने की घोषणा की. उन्होंने कहा, राजद्रोह कानून (sedition law) पूरी तरह निरस्त हो जाएगा. हालांकि राजद्रोह कानून के तहत निरस्त किए गए प्रावधान धारा 150 के तहत बरकरार रहेंगे, जिसके तहत भारत की एकता, अखंडता और संप्रभुता के खिलाफ काम करने वालों को सजा दी जा सकेगी.
धारा 150 के तहत बढ़ाई गई है सजा
सरकार ने राजद्रोह कानून के बजाय इससे जुड़े अपराध पर धारा 150 के तहत सजा देने की तैयारी की है. इसके तहत दोषियों को मिलने वाली सजा में बढ़ोतरी की गई है. मौजूदा राजद्रोह कानून के तहत दोषी को उम्रकैद मिलती है, जिसे 3 साल तक बढ़ाया जा सकता है. धारा 150 के तहत आजीवन कारावास को बरकरार रखने के साथ ही इसे 7 साल तक बढ़ाए जाने का प्रावधान किया गया है. साथ ही जुर्माना भी लगाया जा सकता है.
क्या कहा गया है धारा 150 में
जानबूझकर बोले या लिखे शब्दों या संकेतों या दृश्य प्रतिनिधित्व या इलेक्ट्रॉनिक संचार या वित्तीय साधन के उपयोग से या अलगाव या सशस्त्र विद्रोह की गतिविधियों को उत्तेजित करने की कोशिश वाला व्यक्ति दोषी होगा. कोई ऐसी अलगाववादी भावनाओं को प्रोत्साहित करे या उनमें शामिल हो, जो भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालता है तो ऐसा व्यक्ति धारा 150 के तहत दोषी माना जाएगा.
क्या किया गया है बदलाव
संसद में पेश बिल और मौजूदा IPC-CRPC में कुल 313 अंतर हैं. सरकार ने क्रिमिनल जस्टिस प्रॉसिजर को पूरा बदल दिया है.
7 साल से ज्यादा की सजा वाले सभी मामलों में फोरेंसिक टीम का मौके पर जाकर सबूत जुटाना अनिवार्य किया गया है.
गिरफ्तारी के बाद अपराधी के परिजानों को तुरंत जानकारी देने के लिए एक खास पुलिस अधिकारी तैनात किया जाएगा.
मुकदमों में 3 साल के अंदर न्याय मिले, इसके लिए 3 साल तक की सजा वाली धाराओं में समरी ट्रायल किया जाएगा.
किसी भी केस में चार्ज फ्रेम होने के बाद कार्रवाई को लटकाया नहीं जाएगा. इसके 30 दिन में जज को फैसला सुनाना होगा.
सरकारी कर्मचारी के खिलाफ दर्ज मुकदमे में फाइल नहीं लटकेगी. 120 दिन के अंदर केस चलाने की अनुमति देनी होगी.
मृत्यु दंड को उम्रकैद में बदला जा सकेगा, लेकिन सजा पा चुके शख्स को पूरी तरह बरी करना अब आसान नहीं होगा.
दोषियों की संपत्ति कुर्क करने का फैसला अब पुलिस अधिकारी नहीं कर पाएंगे. इसके लिए कोर्ट से आदेश लेना होगा.
IPC में शामिल होंगी ये नई धाराएं
- धारा 145: यह मौजूदा धारा 121 के जैसी है. यह भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध छेड़ने/युद्ध छेड़ने के प्रयास करने पर लागू होगी.
- धारा 146: यह मौजूदा धारा 121ए के समान है, जो भारत सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने की साजिश रचने पर लागू होगी.
- धारा 147: यह मौजूदा धारा 122 के समान है, जो भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध छेड़ने के इरादे से हथियार जुटाने पर लागू होगी.
- धारा 150: यह राजद्रोह कानून की जगह लेगी, जो भारत की एकता, अखंडता व संप्रभुता की खिलाफत पर लागू होगी.
मानसून सत्र खत्म, अब क्या होगा तीनों विधेयक का?
नए साल में लागू हो जाएंगे नए कानून
मानसून सत्र खत्म होने कारण अब ये तीनों विधेयक संसदीय पैनल को भेजे जाएंगे. पैनल इनका परीक्षण करेगा और अपनी रिपोर्ट देगा. इस रिपोर्ट के आधार पर बिलों में बदलाव करते हुए उन्हें शीतकालीन सत्र में फिर से संसद में पेश किया जाएगा. इसके बाद लोकसभा और राज्यसभा में इन्हें पारित कराया जाएगा.
गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में तीनों विधेयक पेश किए. साथ ही उन्होंने कहा, 1860 से 2023 तक देश की आपराधिक न्याय प्रणाली अंग्रेजों के बनाए कानूनों के तहत काम करती रही है. अब ये तीनों कानून बदल जाएंगे, जिससे देश में आपराधिक न्याय प्रणाली में बड़ा बदलाव हो जाएगा. शाह के इस बयान से अंदाजा लगाया जा रहा है कि केंद्र सरकार संसद के शीतकालीन सत्र में इन तीनों विधेयकों को मंजूरी दिलाकर नए साल से लागू कर देगी.
गुलामी की निशानियों को खत्म करने का हिस्सा
गृह मंत्री शाह ने कहा कि तीन नए कानून लाना ब्रिटिश शासन की गुलामी की निशानियों को खत्म करने के प्रण का हिस्सा है. यह प्रण प्रधानमंत्री ने 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से देश के सामने रखे थे. उन्होंने कहा, अंग्रेजों ने अपने कानून ब्रिटिश गुलामी वाले शासन की रक्षा करने और उसे मजबूत करने के लिए बनाए थे. उन कानूनों का प्रमुख लक्ष्य दंड देना था, जबकि हमारी सरकार के कानूनों का लक्ष्य सजा देना नहीं बल्कि न्याय तय करना है. ये तीनों कानून भारतीय नागरिक अधिकारों की रक्षा करेंगे.
कब लागू हुए थे IPC और CRPC
ब्रिटिश सरकार ने 1857 की क्रांति के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी से भारत अपने कब्जे में ले लिया था. इसके बाद यहां IPC, CRPC और IEA लागू की गई थी ताकि ब्रिटिश शासन एक कानूनी तरीके से चल सके. भारतीय दंड संहिता यानी IPC को 1860 में लागू किया गया था, जबकि भारतीय साक्ष्य अधिनियम यानी IEA को 1872 में पेश किया गया था. इसके बाद 1973 में दंड प्रक्रिया संहिता यानी CRPC लागू की गई थी”