जयपुर में हाल ही में एक और भीषण आग का हादसा सामने आया है, और इस घटना ने एक बार फिर फैक्ट्री मालिकों और प्रशासन की लापरवाही की पोल खोल दी है। शहर की फैक्ट्रियां अब आग के गोदाम बन चुकी हैं, जहां फायर सेफ्टी और सुरक्षा इंतजामात की बिल्कुल भी कोई सुध नहीं ली जा रही है।
घातक लापरवाही का नतीजा
ताजा घटना मनोहरपुर इलाके की एक डायपर फैक्ट्री में हुई, जहां शॉर्ट सर्किट के कारण आग लग गई। यह आग इतनी भीषण थी कि पूरी फैक्टरी जलकर राख हो गई और करीब 20 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। अब सवाल उठता है कि क्या शहर की फैक्ट्रियों में फायर सेफ्टी के लिए जरूरी इंतजाम किए गए हैं? क्या फैक्ट्री मालिकों ने सुरक्षा मानकों का पालन किया?
इससे पहले भी करधनी के सरना डूंगर इलाके में एक प्लास्टिक रिसाइकलिंग फैक्ट्री में आग लगने की घटना हुई थी, जिसमें इलाके में दहशत का माहौल बन गया था। बावजूद इसके प्रशासन ने किसी भी घटना से कुछ सीखने का नाम नहीं लिया। क्या किसी बड़े हादसे का इंतजार किया जा रहा है?
प्रशासन की चुप्पी और फैक्ट्री मालिकों की लापरवाही
फैक्ट्री मालिकों की लापरवाही और प्रशासन की खामोशी ने घटनाओं की श्रृंखला को लंबा किया है। कई फैक्ट्रियों में फायर सेफ्टी के उपकरण तो दूर, फायर ड्रिल तक नहीं होती। यही कारण है कि जब भी कोई घटना होती है, तो आग पूरी फैक्टरी को अपनी चपेट में ले लेती है। इन हादसों में न केवल फैक्ट्री मालिकों का सामान जलता है, बल्कि मजदूरों की जान भी खतरे में पड़ जाती है।
हादसे से सबक क्यों नहीं लेते?
क्या प्रशासन को फैक्ट्री मालिकों और कर्मचारियों की सुरक्षा का कोई ख्याल नहीं है? जब तक कोई हादसा नहीं होता, तब तक फायर सेफ्टी के लिए कोई भी कदम नहीं उठाए जाते। एक के बाद एक हादसों के बावजूद प्रशासन इन फैक्ट्रियों पर निगरानी रखने और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कुछ नहीं करता।
आखिर कब जागेगा प्रशासन?
अब यह सवाल उठता है कि प्रशासन कब जागेगा और कब फायर सेफ्टी के नियमों को सख्ती से लागू करेगा? जब तक प्रशासन इस मुद्दे पर गंभीर नहीं होगा, तब तक सुरक्षा से जुड़ी घटनाएं बढ़ती रहेंगी और शहर के लोग इसके शिकार होते रहेंगे।
जयपुर की फैक्ट्रियां आग के गोदाम बन चुकी हैं, और अगर प्रशासन ने समय रहते सही कदम नहीं उठाए, तो आने वाले वक्त में ऐसी घटनाएं और भी बढ़ सकती हैं। अब देखना यह है कि प्रशासन और फैक्ट्री मालिक इस लापरवाही से कब तक मुंह मोड़े रहेंगे, और कब तक मजदूरों और जनता की जान खतरे में पड़ेगी।