जयपुर, 30 सितंबर – बिहार के दानापुर से निकलकर राजस्थान की राजधानी जयपुर में अपने पैर जमाने वाले अनिल सिंह ने आयुर्वेद के क्षेत्र में एक नया मुकाम हासिल किया है। उनकी कंपनी ‘नारायण औषधि’ न सिर्फ 400 से ज्यादा आयुर्वेदिक दवाओं का निर्माण कर रही है, बल्कि कैंसर जैसी गंभीर बीमारी के इलाज के लिए भी एक प्रभावशाली दवा विकसित की है।
कैंसर की प्रभावशाली आयुर्वेदिक दवा : ‘KIM100’ से मिल रहा अदभुत परिणाम
अनिल सिंह और उनकी टीम ने कैंसर रोगियों के लिए ‘KIM100’ नामक एक आयुर्वेदिक दवा तैयार की है, जो शुरुआती परीक्षणों में काफी प्रभावी साबित हुई है। इस दवा को लेकर कैंसर रोगियों के बीच काफी उत्साह है और उन्हें उम्मीद है कि यह उनके इलाज में एक नया आयाम जोड़ सकती है।
जड़ी-बूटियों की खेती से आयुर्वेदिक साम्राज्य तक
अनिल सिंह का यह सफर काफी संघर्षपूर्ण रहा है। उन्होंने अपने पैतृक गांव में जड़ी-बूटियों की खेती से शुरुआत की और आज वे एक सफल सीरियल उद्यमी बनकर ‘नारायण औषधि’ के जरिए करोड़ों के आयुर्वेदिक साम्राज्य के मालिक हैं। उनकी यह कहानी न सिर्फ प्रेरणादायक है, बल्कि यह इस बात का भी सबूत है कि अगर आपके पास सपने देखने की हिम्मत और उन्हें पूरा करने का जज्बा है, तो आप किसी भी मुश्किल को पार कर सकते हैं।
देश-विदेश में मिल रही है पहचान
आज ‘नारायण औषधि’ की दवाएं देश के कई राज्यों में 15,000 से ज्यादा आयुर्वेदिक डॉक्टरों द्वारा इस्तेमाल की जा रही हैं। अनिल सिंह की योजना जल्द ही यूएई सहित अन्य देशों में भी अपनी दवाओं का निर्यात शुरू करने की है।
अनिल सिंह अपनी सफलता का श्रेय अपनी मां चानों देवी को देते हैं। वे कहते हैं, “मेरी मां मेरी सबसे बड़ी आदर्श हैं। उनकी प्रेरणा से ही मुझे आयुर्वेद के क्षेत्र में आगे बढ़ने का मौका मिला।”
अनिल सिंह की प्रेरणादायक कहानी: जुनून, संघर्ष और सफलता का अनूठा संगम
राजस्थान की राजधानी जयपुर में बिहार दानापुर के रहने वाले एक शख़्स ने आयुर्वेद के क्षेत्र में ऐसा परचम लहराया है कि हर कोई उनकी तारीफ कर रहा है। जी हां, हम बात कर रहे हैं दानापुर के लाल अनिल सिंह की, जिन्होंने ‘नारायण औषधि’ नामक कंपनी के जरिए करोड़ों का आयुर्वेदिक साम्राज्य खड़ा कर दिया है। उनकी यह सफलता यूं ही नहीं मिली, इसके पीछे है सालों का संघर्ष, अटूट विश्वास और आयुर्वेद के प्रति अगाध प्रेम है
बचपन से ही थी कुछ कर गुजरने की चाह
अनिल सिंह का जन्म 10 जुलाई 1974 को बिहार के दानापुर में एक साधारण परिवार में हुआ था। उनके पिता धीरज नारायण सिंह आर्मी में डॉक्टर थे। अनिल शुरू से ही मेधावी छात्र रहे। उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा केंद्रीय विद्यालय, दानापुर कैंट से पूरी की और फिर बी.ए. की डिग्री दानापुर बी.एस. कॉलेज से हासिल की।
खेल के मैदान से व्यापार की दुनिया तक
अनिल सिंह न सिर्फ व्यापार में, बल्कि खेल के मैदान में भी अव्वल थे , राष्ट्रीय स्तर में कई बार भाग लिये और सम्मानित किए जा चुके है , अनिल सिंह के बिहार के एथलीट रहे है जो नेशनल एथलीट 200 मीटर दौड़ के प्रतिभागी थे । 1993 में उन्होंने बिहार सरकार द्वारा आयोजित कई खेलों में हिस्सा लिया और राष्ट्रीय स्तर पर कई बार सम्मानित भी हुए। लेकिन उनकी असली पहचान उन्हें व्यापार की दुनिया में ही मिलनी थी।
उतार-चढ़ाव भरी जिंदगी
हालांकि, अनिल सिंह की जिंदगी हमेशा आसान नहीं रही। उन्होंने कई तरह के व्यापार किए, लेकिन हर बार उन्हें असफलता ही हाथ लगी। फिर पैतृक व्यवसाय में उन्होंने आयुर्वेदिक औषधियों की खेती-किसानी में भी हाथ आजमाया, जिसे आज भी कर रहे है , अश्वगंधा, सतवारी, जीरा, सफ़ेद मूसली , एलोविरा सहित तमाम औषधियाओं की खेती कर रहे है
आयुर्वेद से हुआ गहरा नाता
इन्हीं मुश्किल दिनों में अनिल सिंह का रुझान आयुर्वेद की ओर हुआ। उनके दादा और परदादा भी आयुर्वेदिक औषधियों के किसान थे, जिससे उन्हें इस क्षेत्र में गहरी रुचि पैदा हुई। उन्होंने 25 साल पहले विभिन्न जड़ी-बूटियों की खेती शुरू की, जिसमें एलोवेरा, शतावरी, अश्वगंधा, शार्पगंधा, सफेद मूसली और मुलेठी जैसी महत्वपूर्ण जड़ी-बूटियां शामिल थीं।
‘नारायण औषधि’ की नींव
वर्ष 2010 में अनिल सिंह ने अपने पिता के नाम पर ‘धीरज हर्ब्स प्राइवेट लिमिटेड’ नामक कंपनी की स्थापना की। इस कंपनी का मुख्य कार्यालय उनके गृहनगर दानापुर में ही है। यह कंपनी आयुर्वेदिक दवाओं के निर्माण और वितरण का काम करती है।
अनिल सिंह की यह कहानी उन सभी लोगों के लिए एक मिसाल है, जो अपने सपनों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। वे साबित करते हैं कि अगर आपके पास दृढ़ निश्चय और कड़ी मेहनत करने का जज्बा है, तो आप किसी भी क्षेत्र में सफलता हासिल कर सकते हैं।